खेल और सबक

राघव — एक ऐसा नाम जो कॉलेज से लेकर ऑफिस तक, चर्चा का विषय बना हुआ था। आकर्षक व्यक्तित्व, बेहतरीन संवाद शैली, और आत्मविश्वास से लबरेज। लड़कियाँ उसकी ओर खिंचती थीं, मगर वह भावनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लेता।

उसके लिए रिश्ते एक दिलचस्प अनुभव थे — जिसमें उसे दूसरों को आकर्षित कर छोड़ देने में ही आनंद आता था। वह जुड़ता, मोह करता, फिर दूर हो जाता — जैसे किसी अधूरी आदत का हिस्सा हो।

एक कॉर्पोरेट इवेंट में उसकी मुलाकात कियारा से हुई — शांत, प्रभावशाली और सशक्त। जब राघव ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में बात शुरू की, कियारा मुस्कराई और बोली, “अगर यही तुम्हारा तरीका है प्रभावित करने का, तो मुझे खेद है, यह मेरे लिए नहीं।”

यह पहला अवसर था जब राघव को किसी ने नज़रअंदाज़ नहीं, बल्कि आइना दिखाया। उसके अहं को यह बात चुभ गई। उसने निश्चय किया कि वह कियारा को अपने करीब लाकर छोड़ेगा।

धीरे-धीरे वह उसका ध्यान रखने लगा, उसे समझने का अभिनय करने लगा। कियारा भी सहज हुई, शायद इसलिए कि वह अतीत के गहरे ज़ख्मों से उभर रही थी।

जब उन्होंने एक हिल स्टेशन ट्रिप की योजना बनाई, राघव ने मन ही मन सोचा — अब यह प्रयास समाप्त होगा। लेकिन उस यात्रा ने उसकी सोच को चुनौती दे दी।

एक शांत शाम, जब दोनों एक छोटे से कैफ़े में बैठे थे, कियारा ने कहा, “पिछले अनुभवों ने मुझे तोड़ा है, लेकिन तुम्हारे साथ मैं कुछ हल्का महसूस करती हूँ।”

राघव की आँखों में पहली बार झिझक थी। उसने चाहा कि इस बार सब अलग हो। लेकिन उसकी पुरानी आदतें फिर हावी हो गईं।

ट्रिप के बाद, वह फिर से बदल गया — कॉल्स से दूरी, संदेशों की अनदेखी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन इस बार कियारा ने कोई सवाल नहीं किया, कोई शिकवा नहीं किया।
वह अचानक पूरी तरह गायब हो गई — जैसे कभी थी ही नहीं।

कुछ सप्ताहों में राघव के ऑफिस में एक सनसनी फैल गई। एक गुमनाम मेल के माध्यम से उसकी और कियारा की बातचीत सार्वजनिक कर दी गई थी — वो सभी बातें जो उसने उसे झूठे भरोसे में कहीं थीं। राघव की छवि, जो उसने वर्षों में बनाई थी, एक क्षण में ढह गई।

उसे पहली बार महसूस हुआ कि इस बार वह स्वयं किसी के खेल का हिस्सा बन चुका है — और वह भी बिना जाने।

कियारा से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे। सब जगह से वह जैसे अदृश्य हो चुकी थी।

महीनों बाद, एक पार्टी में वह उसे मिली — आत्मविश्वास से भरी, मुस्कराती हुई। राघव ने तीखे स्वर में पूछा, “तुमने ये सब क्यों किया?”

कियारा बोली,
“ताकि तुम्हें भी पता चले कि जब कोई भरोसा तोड़ता है, तो कैसा लगता है। तुमने जब दूसरों की भावनाओं को मज़ाक समझा, तो सोचा नहीं होगा कि एक दिन तुम्हें भी वही महसूस करना पड़ेगा।”

“मैंने तुम्हारे साथ वही किया जो तुमने औरों के साथ किया — बस फर्क इतना था कि मेरा उद्देश्य बदला लाना नहीं, तुम्हें तुम्हारा सच दिखाना था।”

राघव कुछ नहीं कह पाया। उस रात वह देर तक खुद को देखता रहा — अपनी खामियों से, अपनी कमजोरियों से पहली बार साक्षात्कार करते हुए।

वो बदल गया। व्यवहार में, सोच में, और भावनाओं में। मगर यह बदलाव विलंबित पछतावे से उत्पन्न हुआ था।

और कियारा?

वो आगे बढ़ चुकी थी — एक ऐसी स्त्री के रूप में, जो किसी के साथ भी अब खिलवाड़ नहीं होने देती।


“रिश्तों के साथ यदि छल किया जाए, तो एक दिन वही छल इंसान की पहचान बन जाता है।”

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