शमशान का रहस्य

गांव मऊसराय के पास स्थित शमशान घाट की एक अजीब सी ख्याति थी। कहते थे कि वहां जाने वालों को अपने साथ कुछ न कुछ खोकर लौटना पड़ता है। कभी कोई अपनी याददाश्त, कभी कोई अपनी नींद, और कभी-कभी तो लोग अपना जीवन ही खो बैठते थे। लेकिन लोग इसे महज किस्से-कहानियां समझकर नजरअंदाज कर देते।

इस गांव में राजीव नाम का एक युवक रहता था। शहर में नौकरी करने के बाद हाल ही में वह गांव लौटा था। राजीव तार्किक सोच वाला था और किसी भी तरह के अंधविश्वास को बकवास मानता था। गांव लौटने पर उसने सुना कि शमशान घाट पर अजीब-अजीब घटनाएं हो रही हैं। किसी ने बताया कि वहां रात में एक महिला की रोने की आवाज आती है, तो किसी ने कहा कि वहां जाने के बाद लोग बीमार पड़ जाते हैं।

एक दिन राजीव ने तय किया कि वह इस “अजीब घटनाओं” के पीछे की सच्चाई का पता लगाएगा।

राजीव ने अपने दोस्तों, मोहित और दीपक, को साथ चलने के लिए कहा। दोनों पहले तो झिझके, लेकिन राजीव के दबाव के आगे हार मानकर चल पड़े। रात के करीब 11 बजे तीनों शमशान घाट पहुंचे। चारों तरफ गहरी खामोशी थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और जले हुए चिताओं की राख से अब भी गर्मी निकल रही थी।

राजीव ने वहां बैठकर मोहित और दीपक से कहा, “देखा, यहां कुछ भी अजीब नहीं है। सब मन का वहम है।”

तभी अचानक, एक कोने से किसी के गाने की आवाज सुनाई दी। आवाज बेहद धीमी थी, लेकिन स्पष्ट थी। तीनों ने इधर-उधर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। मोहित ने डरकर कहा, “मुझे यहां से चलना है। ये जगह सही नहीं लग रही।”

राजीव ने उसे डांटा, “यह सब तुम्हारे मन का डर है। यहां कोई नहीं है।”

अचानक, दीपक ने देखा कि एक पेड़ के नीचे कोई खड़ा है। वह बोला, “वह देखो! वहां कोई है!” तीनों ने ध्यान से देखा, लेकिन वहां कुछ नहीं था।

अगले दिन, राजीव और उसके दोस्तों ने महसूस किया कि कुछ अजीब हो रहा है। मोहित हर समय चुपचाप रहने लगा। दीपक को रातों को नींद नहीं आती थी, और उसे लगता था कि कोई उसके कानों में फुसफुसा रहा है।

राजीव ने इसे सामान्य समझा और दोस्तों को तसल्ली दी। लेकिन खुद राजीव भी रात में अजीब सपने देखने लगा। सपने में वह एक महिला को देखता, जो शमशान घाट पर बैठी हुई रो रही होती। उसके कपड़े गंदे और फटे थे, और उसके बाल बिखरे हुए।

उस महिला ने एक रात सपने में राजीव से कहा, “तुमने मेरी जगह को अपवित्र किया है। तुमने मेरी शांति को भंग किया है।”

राजीव हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसने खुद को समझाया कि यह सब उसके दिमाग का खेल है। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, राजीव की जिंदगी में घटनाएं बढ़ने लगीं।

राजीव के पिता अचानक बीमार पड़ गए। डॉक्टरों ने कहा कि यह सामान्य बुखार है, लेकिन उनकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई। राजीव की मां को ऐसा लगने लगा कि कोई घर में छिपकर उन्हें देख रहा है।

एक रात, जब राजीव घर लौटा, तो उसने देखा कि उसके कमरे का दरवाजा खुद-ब-खुद खुला। अंदर उसने अपने टेबल पर राख के निशान देखे। यह वही राख थी, जो शमशान में पाई जाती है।

उसने मां से पूछा, “क्या यहां कोई आया था?”

मां ने कहा, “नहीं बेटा, दिनभर कोई नहीं आया।”

राजीव ने आखिरकार गांव के सबसे पुराने व्यक्ति, पंडित हरिहरन, से बात करने का फैसला किया। पंडितजी ने उसकी पूरी बात सुनकर कहा, “तुमने शमशान की मर्यादा तोड़ी है। वहां किसी की आत्मा फंसी हुई है। वह सिर्फ उन्हें सताती है, जो उसकी शांति में बाधा डालते हैं।”

पंडितजी ने बताया कि कई साल पहले शमशान घाट पर एक विधवा महिला रहती थी। वह लोगों की मदद करती थी, लेकिन गांववालों ने उस पर काला जादू करने का आरोप लगाकर उसे जिंदा जला दिया। मरते वक्त उसने शाप दिया था कि जो भी उसकी जगह पर आएगा, वह उसे बर्बाद कर देगी।

पंडितजी ने राजीव को एक अनुष्ठान करने की सलाह दी। राजीव ने मोहित और दीपक को साथ लिया और शमशान घाट गया। रात के ठीक 12 बजे, जब अनुष्ठान शुरू हुआ, तो चारों ओर तेज हवा चलने लगी। चिताओं की राख हवा में उड़ने लगी, और अचानक वह महिला प्रकट हुई।

उसने राजीव से कहा, “तुमने मेरी शांति भंग की। अब तुम मेरी जगह को छोड़कर जाओ, वरना मैं तुम्हारे पूरे परिवार को ले जाऊंगी।”

राजीव ने साहस दिखाते हुए कहा, “मैंने जो किया, उसके लिए माफी चाहता हूं। मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है।”

महिला ने एक पल के लिए उसकी आंखों में देखा। उसकी आंखों में दर्द और क्रोध के साथ एक उम्मीद भी झलक रही थी। अनुष्ठान पूरा होते ही महिला धीरे-धीरे हवा में विलीन हो गई।

घटनाएं धीरे-धीरे थम गईं। राजीव के पिता की तबीयत सुधरने लगी, और घर में शांति लौट आई। लेकिन राजीव ने जीवनभर उस रात का अनुभव याद रखा। उसने सीखा कि हर जगह की अपनी मर्यादा होती है, और किसी की पीड़ा को अनदेखा करना विनाशकारी हो सकता है।

और शमशान घाट? वह अब भी वहां था—खामोश, भयावह, और अपने रहस्यों से भरा हुआ। लेकिन राजीव ने कभी उस ओर लौटने की हिम्मत नहीं की।

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