एक प्रेत का प्रतिशोध

शांतिपुर… यह नाम सुनते ही मन में शांति की लहर दौड़ जाती है, लेकिन आज यहाँ केवल मौत का सन्नाटा पसरा है। टूटी खिड़कियों से झांकती अंधेरी आँखें, बंजर पड़े खेतों में सिसकती हवाएँ, और उस डरावनी हवेली की दीवारों पर चिपकी हुई आत्माओं की छायाएँ। रात के अंधेरे में जब चाँद छुप जाता है, तो यहाँ की हवाओं में तैरती सिसकियाँ और बच्चों के रोने की आवाज़ें सुनाई देती हैं।

मंदिर की घंटी अब नहीं बजती, बल्कि उसकी जगह एक भयानक हँसी गूंजती है – वो हँसी जो किसी टूटी आत्मा की पीड़ा से जन्मी है, जो अब तक प्रतिशोध की आग में जल रही है।

यह सब कुछ उस समय शुरू हुआ जब शांतिपुर में एक सच्चे भक्त का वास था। पंडित रामदीन, जिसका नाम सुनते ही गाँव के लोगों के मन में श्रद्धा का भाव जग उठता था। वह कोई धनी व्यक्ति नहीं था, न ही उसके पास कोई बड़ी संपत्ति थी। बस एक छोटी सी मिट्टी की झोपड़ी और कुछ बीघा ज़मीन – वही ज़मीन जो मंदिर के पास स्थित थी और जो उसके पूर्वजों की निशानी थी।

रामदीन की दिनचर्या अत्यंत सरल थी। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जल से स्नान करता, फिर माँ भगवती की पूजा में लीन हो जाता। उसकी आरती की आवाज़ सुनकर पूरा गाँव जाग उठता था। शाम को भी वह मंदिर में दीप जलाता और गाँववालों को धर्म की बातें समझाता।

उसकी पत्नी सुमित्रा भी उसी के समान पवित्र स्वभाव की थी। दो छोटे बच्चे थे – बेटा राम और बेटी सीता। परिवार गरीब था, लेकिन खुशी से भरा हुआ। रामदीन कहता था, “भगवान ने जो दिया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। लालच ही सारे पापों की जड़ है।”

लेकिन यह वही ज़मीन थी जो उसके विनाश का कारण बनने वाली थी।

गाँव का प्रधान बलदेव सिंह एक बिल्कुल अलग किस्म का आदमी था। मोटा-ताज़ा, पेट निकला हुआ, और आँखों में हमेशा लालच की चमक। उसकी हवेली गाँव की सबसे बड़ी इमारत थी, जिसे देखकर लगता था कि यहाँ कोई राजा रहता है। लेकिन उसका मन कभी भरता नहीं था।

उसकी नज़र रामदीन की उस ज़मीन पर पड़ी थी जो मंदिर के पास स्थित थी। वह जानता था कि अगर वहाँ बाजार बना दे, तो लाखों रुपये कमा सकता है। उसने रामदीन को कई बार समझाने की कोशिश की।

“देख रामदीन, तू इस ज़मीन का क्या करेगा? यहाँ मैं एक बड़ा बाजार बनाऊँगा। तुझे अच्छी कीमत दूँगा, और तू कहीं और अच्छी जगह घर बना लेना।”

लेकिन रामदीन का जवाब हमेशा एक ही होता था: “बलदेव भाई, यह ज़मीन मेरे बाप-दादाओं की है। यहाँ मैंने बचपन से माँ भगवती की पूजा की है। मैं इसे कभी नहीं बेचूँगा।”

यह सुनकर बलदेव के चेहरे पर क्रोध की लालिमा छा जाती। उसकी आँखों में खतरनाक चमक आ जाती। एक दिन उसने धमकी देते हुए कहा:

“रामदीन, तू बहुत बड़ी गलती कर रहा है। मैं इस गाँव का प्रधान हूँ। अगर तूने मेरी बात नहीं मानी, तो तुझे भुगतना पड़ेगा।”

अमावस्या की रात थी। आकाश में घने बादल छाए हुए थे, और चाँद-तारे सभी छुप गए थे। रामदीन मंदिर में अपनी नियमित पूजा कर रहा था। दीपक की टिमटिमाती रोशनी में माँ भगवती की मूर्ति भी आज कुछ अलग लग रही थी, जैसे वह कोई चेतावनी दे रही हो।

रात के लगभग बारह बजे, जब पूरा गाँव गहरी नींद में सोया हुआ था, तभी रामदीन की झोपड़ी के बाहर भारी जूतों की आवाज़ आई। दरवाज़े पर जोर से दस्तक हुई।

“कौन है?” रामदीन ने पूछा।

“दरवाज़ा खोल!” बलदेव की रुखी आवाज़ आई।

रामदीन ने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बलदेव अपने पाँच-छह गुंडों के साथ खड़ा है। सभी के हाथों में लाठियाँ थीं और चेहरों पर क्रूरता का भाव था।

“चल हमारे साथ,” बलदेव ने कहा।

“क्यों? क्या बात है?” रामदीन ने घबराते हुए पूछा।

“बहुत सवाल मत पूछ। चुपचाप चल।”

इससे पहले कि रामदीन कुछ और कह पाता, गुंडों ने उसे जबरन पकड़ लिया। सुमित्रा रोते हुए दौड़ी आई:

“मेरे पति को कहाँ ले जा रहे हो? वह तो भला आदमी है!”

“चुप रह!” बलदेव ने चिल्लाकर कहा। “वरना तेरे साथ भी वही होगा।”

बच्चे रोते हुए माँ से लिपट गए। सुमित्रा की चीखें पूरे गाँव में गूंजी, लेकिन किसी ने दरवाज़ा तक नहीं खोला। सभी डर के मारे चुप थे।

बलदेव की हवेली के तहखाने में एक अंधेरा कमरा था। वहाँ न तो कोई खिड़की थी, न ही हवा आने का कोई रास्ता। दीवारें नम थीं और हवा में सड़न की बदबू थी। रामदीन को इसी कमरे में बंद कर दिया गया।

पहले दिन, रामदीन ने सोचा कि यह सब कुछ देर का मामला है। बलदेव अपनी नाराज़गी निकालकर उसे छोड़ देगा। लेकिन जब दिन गुज़रते गए और कोई रिहाई की उम्मीद नज़र नहीं आई, तो उसका मन घबराने लगा।

भूख और प्यास से उसका गला सूख गया था। दिन में एक बार पानी का घूँट और रोटी का टुकड़ा मिलता था। रात में चूहे उसके शरीर पर दौड़ते थे। लेकिन इन सब कष्टों के बावजूद भी रामदीन का मन माँ भगवती की भक्ति से नहीं डिगा।

वह मन ही मन माँ के भजन गाता रहता:

“माँ, तू ही मेरी रक्षा करेगी। तू ही मेरे बच्चों की सुध लेगी।”

तीसरी रात को जब रामदीन दर्द से तड़प रहा था, तभी अचानक पूरा तहखाना एक दिव्य प्रकाश से भर गया। वहाँ की दुर्गंध मिट गई और हवा में चंदन की सुगंध फैल गई।

रामदीन ने आँखें खोलीं तो देखा कि सामने माँ जगदम्बा खड़ी हैं। उनका चेहरा तेज़ से चमक रहा था, और आँखों में करुणा का भाव था।

“माँ!” रामदीन रोते हुए उनके चरणों में गिर पड़ा।

माँ ने अपना हाथ उसके सिर पर रखा और कहा: “पुत्र, तू मेरा सच्चा भक्त है। तेरी भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। बता, तू क्या चाहता है?”

रामदीन काँपते स्वर में बोला: “माँ, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तेरी भक्ति चाहिए। अगले जन्म में भी मैं तेरा भक्त बनूँ।”

माँ मुस्कराई और बोली: “मैं तुझसे प्रसन्न हूँ, पुत्र। तेरी मृत्यु निश्चित है, लेकिन मरते समय तेरे मन में जो भाव होंगे, वही तेरे अगले जन्मों में तेरा स्वरूप बनेंगे। तू चाहे जो भी मांगे, मैं तुझे शक्ति दूँगी।”

माँ का दिव्य रूप धीरे-धीरे अदृश्य हो गया, लेकिन रामदीन के मन में एक अजीब शांति थी। वह जानता था कि माँ उसके साथ हैं।

लेकिन माँ के दर्शन के तुरंत बाद ही बलदेव तहखाने में आया। उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी।

“क्यों रामदीन, अब मान गया कि मैं कितना ताकतवर हूँ?” उसने ठहाके लगाते हुए कहा।

“बलदेव, तू जो चाहता है वो कर। लेकिन मैं अपनी ज़मीन नहीं बेचूँगा।”

“अरे बेवकूफ!” बलदेव ने हँसते हुए कहा। “तेरी ज़मीन तो मैं पहले ही ले चुका हूँ। तेरे अंगूठे का निशान लगवाकर कागज़ पर दस्तखत करवा लिए हैं। अब वो ज़मीन मेरी है।”

यह सुनकर रामदीन को जोर का झटका लगा। “यह तूने क्या किया?”

“और सुन,” बलदेव ने और भी क्रूरता से कहा, “तेरी बीवी और बच्चों को भी गाँव से बेइज्जत करके भगा दिया है। अब वे भीख मांगते फिरते हैं। तेरा बेटा राम भूख से मर गया है।”

यह सुनकर रामदीन की आत्मा में एक भयानक तूफान उठा। उसके मन में भक्ति और आक्रोश की भीषण लड़ाई छिड़ गई। माँ की दी हुई शक्ति और प्रतिशोध की आग एक साथ जल उठी।

“तूने मेरे बच्चे को मार डाला?” रामदीन की आँखें लाल हो गईं।

“हाँ, और अब तुझे भी मारूँगा।” बलदेव ने एक भारी लाठी उठाई और रामदीन के सिर पर जोर से मारा।

रामदीन की मृत्यु के समय उसके मन में दो भावनाएँ थीं – माँ की भक्ति और बलदेव से प्रतिशोध। ये दोनों भावनाएँ मिलकर एक ऐसी आत्मा बनीं जो न पूरी तरह से पवित्र थी, न पूरी तरह से अशुभ।

रामदीन ने अपनी अंतिम सांस लेते हुए कहा: “माँ, मुझे शक्ति दो। मैं इस पापी को सजा दूँगा। जो उसने मेरे साथ किया है, वही उसके साथ होगा।”

रामदीन की मृत्यु के बाद बलदेव ने उसकी लाश को रात के अंधेरे में गाँव के बाहर फेंक दिया। अगली सुबह उसने सभी को बताया कि रामदीन गाँव छोड़कर चला गया है।

लेकिन दो दिन बाद से अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं।

पहले दिन, बलदेव की पत्नी दुर्गा देवी ने रसोई में खाना बनाते समय देखा कि खिड़की में कोई खड़ा है। जब उसने पास जाकर देखा तो वहाँ रामदीन की परछाई थी।

“आह!” वह चीख पड़ी और बेहोश हो गई।

दूसरे दिन, हवेली में रात को अजीब आवाज़ें आने लगीं। जैसे कोई रो रहा हो, या कोई हँस रहा हो। यह आवाज़ें इतनी डरावनी थीं कि नौकर डर के मारे भाग गए।

तीसरे दिन की सुबह, बलदेव का बेटा विक्रम मरा पाया गया। उसकी आँखें बाहर निकली हुई थीं, चेहरा पीला पड़ गया था, और मुँह से झाग निकल रहा था। लगता था जैसे उसने कोई भयानक दृश्य देखा हो।

गाँव में फुसफुसाहट शुरू हो गई: “रामदीन वापस आ गया है। वो प्रतिशोध ले रहा है।”

धीरे-धीरे पूरा गाँव इस अभिशाप की चपेट में आ गया। मंदिर की घंटी अब भजन की मधुर आवाज़ नहीं निकालती थी, बल्कि एक कर्कश, डरावनी आवाज़ करती थी।

रात को बच्चों को भयानक सपने आने लगे। वे सपने में रामदीन को देखते थे, जो उनसे कहता था: “मेरे बच्चे को न्याय दिलाओ।”

हवेली के पास जाने वाले लोग या तो पागल हो जाते थे या फिर उनकी रहस्यमय मौत हो जाती थी। हवा में हमेशा सड़े मांस की बदबू रहती थी।

एक दिन गाँव में एक तांत्रिक आया। उसने हवेली को देखा और कहा: “यह कोई साधारण आत्मा नहीं है। यह एक भक्त और प्रेत का मिला-जुला रूप है। इसमें देवी माँ की शक्ति और प्रतिशोध की आग दोनों है। इसे कोई शांत नहीं कर सकता।”

बलदेव की सात साल की बेटी प्रिया एक मासूम बच्ची थी। एक रात वह अपने कमरे में सो रही थी, जब अचानक वह गायब हो गई। उसकी माँ दुर्गा देवी ने सुबह देखा कि बिस्तर खाली है।

“प्रिया! प्रिया!” वह चीखते हुए पूरी हवेली में दौड़ी। लेकिन प्रिया कहीं नहीं मिली।

रात को हवेली से प्रिया के रोने की आवाज़ आती थी:

“पापा, मुझे छोड़ दो। मैं घर जाना चाहती हूँ।”

लेकिन जब कोई उस आवाज़ को ढूंढने जाता, तो वहाँ कुछ नहीं मिलता। केवल ठंडी हवा और मौत की खुशबू।

दुर्गा देवी पागल हो गई। वह दिन-रात बुदबुदाती रहती: “रामदीन… प्रिया… रामदीन… प्रिया…”

एक महीने बाद, एक रात बलदेव अकेला अपने कमरे में बैठा था। उसने शराब पी रखी थी और सोच रहा था कि यह सब कुछ केवल अंधविश्वास है।

“कोई भूत-प्रेत नहीं होता,” वह अपने आप से कह रहा था। “यह सब लोगों की कल्पना है।”

अचानक कमरे का तापमान गिर गया। बलदेव की सांस बाहर निकली तो भाप बनकर दिखाई दी। दरवाज़ा अपने आप खुल गया, लेकिन कोई अंदर नहीं आया।

“कौन है?” बलदेव ने काँपते स्वर में पूछा।

तभी कमरे में एक डरावनी हँसी गूंजी। यह हँसी इतनी भयानक थी कि दीवारें कांप उठीं।

“बलदेव…” एक आवाज़ आई। यह रामदीन की आवाज़ थी, लेकिन इसमें कुछ अलग था। यह आवाज़ इतनी डरावनी थी कि बलदेव के होश उड़ गए।

अचानक कमरे में रामदीन का भूत प्रकट हुआ। उसकी आँखें लाल थीं, चेहरा जला हुआ था, और पूरा शरीर एक अजीब रोशनी से चमक रहा था।

“तूने मुझे मारा, मेरे बच्चे को मारा, मेरी पत्नी को बेइज्जत किया,” रामदीन का भूत बोला। “अब मैं तुझे वही दर्द दूँगा जो तूने मुझे दिया था।”

“मुझे माफ कर दे रामदीन,” बलदेव रोते हुए बोला। “मैं तुझे तेरी ज़मीन वापस कर दूँगा।”

“अब बहुत देर हो चुकी है,” रामदीन का भूत हँसा। “अब सिर्फ प्रतिशोध का समय है।”

रामदीन के भूत ने अपना हाथ बलदेव के सिर पर रखा। बलदेव को लगा जैसे उसका दिमाग जल रहा हो। वह चीखता रहा, लेकिन कोई आवाज़ नहीं निकली।

अगली सुबह नौकरों ने बलदेव की लाश पाई। उसका पूरा शरीर नीला पड़ गया था, आँखें बाहर निकली हुई थीं, और चेहरे पर भयानक डर का भाव था।

बलदेव की मौत के बाद दुर्गा देवी की हालत और भी खराब हो गई। वह दिन-रात प्रिया को ढूंढती रहती। एक रात वह बड़बड़ाते हुए गाँव के कुएँ पर पहुँची।

“प्रिया… मेरी प्रिया… मैं भी तेरे पास आ रही हूँ,” वह कहती हुई कुएँ में कूद गई।

अगली सुबह गाँव वालों ने उसकी लाश कुएँ में पाई।

प्रिया का शव कभी नहीं मिला। लेकिन आज भी हवेली से उसकी रोने की आवाज़ आती है। लोग कहते हैं कि रामदीन का भूत उसे अपने साथ रखता है, ताकि वह बलदेव के पापों की सजा भुगतती रहे।

आज शांतिपुर एक शापित गाँव है। जो लोग वहाँ रहते थे, वे सभी डर के मारे भाग गए हैं। अब वहाँ केवल खंडहर हैं, जंगली जानवर और आत्माओं का डर।

हवेली आज भी वहाँ खड़ी है, लेकिन अब वह एक डरावनी जगह है। खिड़कियाँ टूटी हुई हैं, दीवारों पर काई लग गई है, और अंदर से अजीब आवाज़ें आती रहती हैं।

मंदिर भी वीरान पड़ा है। माँ भगवती की मूर्ति पर धूल जम गई है, और वहाँ कोई दीपक नहीं जलता। लेकिन रात को वहाँ से रामदीन की प्रार्थना की आवाज़ आती है।

खेत बंजर हो गए हैं। वहाँ अब कुछ नहीं उगता। केवल काँटेदार झाड़ियाँ और जंगली घास है।

रात को राहगीरों को हवेली की खिड़कियों में लाल आँखें चमकती दिखाई देती हैं। कभी-कभी वहाँ से बच्चों के रोने की आवाज़ आती है।

गाँव के बुजुर्ग कहते हैं कि रामदीन का भूत अभी भी वहाँ है। वह अपने परिवार के साथ न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। जब तक उसे पूरा न्याय नहीं मिलता, तब तक वह शांतिपुर को शापित रखेगा।

आज भी जो लोग वहाँ जाने की हिम्मत करते हैं, वे वापस नहीं आते। या तो वे पागल हो जाते हैं, या फिर उनकी मौत हो जाती है।

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